Sunday, March 21, 2010

मौसम सुहाना था

पंछियो की चहक से
फूलों की महक से
हवाओं की सायं सायं से
मौसम सुहाना था
कान्हा के जंगल में
मोर ने अपने पंख बिखरे
mornee को रिझाने
मोर चला मोरनी के पीछ पीछ
अपने पंख उठाये
हवाओं की सायं सायं से
मौसम सुहाना था








1 comment:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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