skip to main
|
skip to sidebar
anil gupta Nagpur
Sunday, March 21, 2010
मौसम सुहाना था
पंछियो की चहक से
फूलों की महक से
हवाओं की सायं सायं से
मौसम सुहाना था
कान्हा के जंगल में
मोर ने अपने पंख बिखरे
mornee को रिझाने
मोर चला मोरनी के पीछ पीछ
अपने पंख उठाये
हवाओं की सायं सायं से
मौसम सुहाना था
1 comment:
Urmi
March 22, 2010 at 1:00 AM
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
►
2011
(2)
►
September
(1)
►
January
(1)
▼
2010
(35)
►
April
(1)
▼
March
(18)
ये टूटाकांच का गिलासऐसा लगागिलास नहीं कोई अरमान टू...
मुझे एसा क्यों लगा की तुम मुझ से नाराज़ होमैंने अप...
नज़र बाज़ ने नज़र सनम कोनज़र ने नज़र को मिलते देखानज़र ...
मौसम सुहाना था
पर रात अभी बाकि थी
कंहा गएँ सितारे मेरे शहर से
हवाई जहाज़ का सफ़र
जीवन से भरी तेरी ऑंखें
इंतज़ार
Right Yaaa Wrong My review.
When two couple meet
सुहाना मोसम
हम दुखी क्यों रहेते है?????????????
Why we take gentlemen for granted?????
पल पल दिल के पास तुम रहती हो
चलते चलते मेरे यह गीत याद रखना
दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाएँ
BANDRA FORT AT BANDRA WEST, MUMBAI, INDIA
►
February
(16)
►
2009
(2)
►
January
(2)
About Me
anil gupta
View my complete profile
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
ReplyDelete