तारें दूब रहे थे
हवा शांत हो चली थी
रात की शयाही घनी हो चली थी
पर रात अभी बाकि थी
पलके बंद हो चली थी
सांसे मध्यम हो चली थी
शरीर सिथिल हो चला था
पर रात अभी बाकि थी
सपने टूट चुके थे
साथी बिछुड़ चुके थे
आंसू थम चुके थे
पर रात अभी बाकि थी
Sunday, March 21, 2010
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Achhi kavita hai..
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